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बिहार में पॉलिटिक्स करके कौन-सी गलती दोहरा रहे हैं प्रशांत किशोर, यहां समझें

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बिहार में पॉलिटिक्स करके कौन-सी गलती दोहरा रहे हैं प्रशांत किशोर, यहां समझें

 बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने प्रशांत किशोर को लेकर अपने फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट लिखी है। सत्ता और सियासत की चढ़ती-ढलती तिलिस्म को करीब से देखने वाले सुरेंद्र किशोर ने उदाहरण के जरिए प्रशांत किशोर को सलाह दी है। उनको लगता है कि प्रशांत किशोर जिस मिशन में लगे हैं, उसमें उन्हें सफलता की बहुत कम उम्मीद है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें राजनीति करनी ही है तो अलग लकीर खींचने की बजाए, किसी दल में शामिल हो जाएं और अपनी बारी का इंतजार करें। हालांकि आखिर में उन्होंने ये भी कहा कि प्रशांत किशोर उनसे मिलना चाहते थे, मगर मुलाकात नहीं हो सकी। इसकी वजह भी उन्होंने बताई है।

वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार:

प्रशांत किशोर बड़ी उम्मीद के साथ बिहार में सक्रिय हैं। उनकी मेहनत देखकर मैं प्रभावित हूं। पर, इनकी सक्रियता देख कर मुझे डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की सक्रियता याद आ रही है। नब्बे के दशक में डॉ. स्वामी भी बिहार में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने मध्य पटना में एक मकान भी खरीद लिया था। उसमें उनकी पार्टी का ऑफिस था। डॉ. स्वामी ने निश्चय किया था कि वे बिहार की तत्कालीन सरकार को उखाड़ फेकेंगे। उस राज को पटना हाई कोर्ट ने ‘जंगल राज’ कहा था। जब डॉ. स्वामी अपने काम में सफल नहीं हुए तो वे मकान बेच कर बिहार से चले गए।

क्यों सफल नहीं हुए ?
क्योंकि उन्हें बिहार की जमीनी राजनीति, समाज नीति और राजनीति तथा समाज के बीच के संबंधों की कोई खास समझ नहीं थी। पर डॉ. स्वामी को जिस बात की समझ थी, उस काम में वे अधिक तन्मयता से लग गए। उसमें वे सफल भी हुए। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में विस्फोटक इंटरव्यू दे-देकर और लोकहित याचिकाओं के जरिए जयललिता तथा देश के कई अन्य राजनीतिक हस्तियों को उनकी औकात बता दी।

इधर, प्रशांत किशोर के जो विचार सामने आते रहे हैं, उससे मुझे यह लगता है कि बिहार के बारे में प्रशांत की समझदारी का स्तर भी डॉ. स्वामी जैसा ही है। इसलिए मेरी समझ के अनुसार प्रशांत किशोर बिहार में अपना बहुमूल्य समय खराब कर रहे हैं। मुझसे पूछेंगे तो मैं उन्हें कहूंगा कि यदि आपको बिहार में ही रहना है तो किसी न किसी संगठित दल में शामिल होकर उसमें अनुशासित ढंग से रहिए और काम करिए। अपनी ‘बारी’ का इंतजार करिए। अन्यथा, आप डॉ. स्वामी का मार्ग अपना कर जीवन को सार्थक बनाएं। देश में भ्रष्टाचार आज सबसे बड़ी समस्या है। अन्य राष्ट्रीय समस्याओं से लड़ने में भी भ्रष्टाचार बाधक बन रहा है।

उनकी तमाम उछल -कूद के बावजूद मैं डॉ. स्वामी के जीवन को सार्थक मानता हूं। उन्होंने न सिर्फ देश के सर्वाधिक भ्रष्ट मुख्यमंत्री को जनहित में बर्बाद कर दिया, बल्कि भ्रष्टों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए अन्य जनहितकारी लोगों को भी एक बहुत बड़ा कानूनी हथियार थमा दिया। डॉ. स्वामी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट यह आदेश दे चुका है कि कोई आम नागरिक कोर्ट में याचिका दायर कर किसी बड़ी से बड़ी भ्रष्ट हस्ती के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करवा सकता है। उसके लिए उसे कोई सरकारी अनुमति नहीं चाहिए। इस कानूनी सुविधा का इस्तेमाल करके कोई व्यक्ति जनता का हीरो बन सकता है।

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हाल में प्रशांत किशोर के ऑफिस से मुझे फोन आया था। कहा गया कि प्रशांत जी आपसे मिलना चाहते हैं। मैं अशिष्ट न होते हुए कह दिया कि मैं घर से निकलने की स्थिति में नहीं हूं। वैसे भी इमरजेंसी छोड़कर मैं घर से नहीं निकलता। निकलने की अब मुझे कोई जरूरत भी नहीं रही। न कोई ‘इच्छा’ बची है। मेरा पुस्तकालय -संदर्भालय ही मेरा सबसे बढ़िया दोस्त है। दरअसल, प्रशांत जी से मैं यदि मिलता तो मुलाकात के बाद उन्हें भी लगता कि उनका समय बर्बाद हुआ। क्योंकि बिहार के बारे में समझदारी को लेकर हम दोनों ‘‘किशोर’’ दो छोर पर हैं।

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