Home बिहार के अखबारों में बिहार में पैदा होते ही बच्चों के होंगे कई टेस्ट, शिशु मृत्यु रोकने के लिए सरकार का एक और कदम

बिहार में पैदा होते ही बच्चों के होंगे कई टेस्ट, शिशु मृत्यु रोकने के लिए सरकार का एक और कदम

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बिहार में पैदा होते ही बच्चों के होंगे कई टेस्ट, शिशु मृत्यु रोकने के लिए सरकार का एक और कदम

बिहार में शिशु मृत्यु दर में दो अंकों की कमी आई है। 2019 की अपेक्षा 2020 में शिशु मृत्यु दर 29 से घटकर 27 हो गई है। बिहार से इतर देश में एक हजार बच्चों पर 28 नवजात असमय मौत का शिकार हो रहे हैं।

सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (सीआरएस) 2020 की रिपोर्ट हाल में प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार बिहार में शिशु मृत्यु दर में दो अंकों की कमी आई है। राज्य में 2019 की अपेक्षा 2020 में शिशु मृत्यु दर 29 से घटकर 27 हो गई है। बिहार ने शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए बीते वर्षो में स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी कार्य किया है। यह उसी का परिणाम है। बिहार से इतर देश में एक हजार बच्चों पर 28 नवजात असमय मौत का शिकार हो रहे हैं। बिहार में यह आंकड़ा 27 का है। यानी देश के अनुपात में एक अंक कम। सीआरएस के परिणामों को देखने के बाद चालू वित्तीय वर्ष में शिशु मृत्यु दर में और कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग नई पहल करने जा रहा है। इसके तहत सभी तरह के अस्पतालों में पैदा होने वाले बच्चों की कई प्रकार की जांच के प्रबंध किए जाएंगे। कार्य सुगमता से हो इसके लिए अस्पतालों में जांच के लिए डेडिकेटेड रूप से प्रशिक्षित डाक्टर और नर्से तैनात रहेंगी।

विभाग का फैसला है कि मेडिकल कालेज अस्पताल, जिला अस्पताल, अनुमंडल अस्तपाल, रेफरल अस्पतालों में प्रशिक्षित डाक्टर-नर्सें तैनात किए जाएंगे। उनका काम नवजात की अलग-अलग जांच और उसकी रिपोर्ट तैयार करना होगा। रिपोर्ट से मुख्यालय को अवगत कराया जाएगा। संबंधित डाक्टर-नर्सों के प्रशिक्षण का एक सत्र पूरा भी हो चुका है। नवजात के चार अलग-अलग श्रेणियों में टेस्ट किए जाएंगे। इनमें विजिबल बर्थ डिफेक्ट, फंक्शनल डिफेक्ट, न्यूरोलाजिकल डिफेक्ट एवं मेटाबोलिक डिफेक्ट टेस्ट प्रमुख हैं। जांच के क्रम में नवजात में किसी प्रकार की बीमारी, अनुवांशिक लक्षण की जानकारी मिलने पर उसके तत्काल इलाज की व्यवस्था भी होगी।

प्रथम कार्य दायित्व शिशु मृत्यु दर कम करना

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि विभाग का प्रथम कार्य दायित्व शिशु मृत्यु दर कम करना है। कई बार अनुवांशिक लक्षण या गर्भावस्था के दौरान कुछ जटिलताओं की वजह से नवजात बीमार होते हैं। उसे समय रहते डिलीवरी प्वाइंट पर पकड़ लिया जाता है तो बहुत हद तक उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। जल्द ही अस्पतालों में डेडिकेटेड जांच की व्यवस्था हो जाएगी।

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