बिहार के 261 नगर निकायों में चुनाव लडऩे वाले 27 हजार से अधिक उम्मीदवारों को अफसरों की लापरवाही और कोर्ट के निर्णय से दोहरा झटका लगा है। इससे पहले फरवरी से अप्रैल के बीच भी चुनाव की घोषणा को देखते हुए भावी लड़ाकों ने तैयारियां पूरी कर ली थीं, लेकिन चुनाव टल गया।
लाखों रुपए खर्च कर चुके हैं उम्मीदवार
सरकार की ओर से सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराने की घोषणा को देखते हुए अगस्त से ही दावेदारों ने तैयारी में ताकत झोंक दी थी। इस दौरान बड़े पैमाने पर लड़ाकों ने चुनाव प्रचार से लेकर मत प्रबंधन पर लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद सारी की सारी तैयारियां धरी रह गईं।
मोबाइल बंद कर छिपे कई प्रत्याशी
लाखों रुपये बर्बाद हो गए, कई प्रत्याशियों ने देनदारी के डर से अब मोबाइल बंद कर लिया है। भविष्य की आशंका में कईयों के परेशानी बढ़ गई है। हजारों उम्मीदवार ऐसे हैं जो नौकरी छोड़कर चुनाव लडऩे आ गए थे। ऐसे लड़कों के सामने भी संकट गहरा गया है।
भविष्य को लेकर पशोपेश में प्रत्याशी
चुनाव में लाखों रुपये खर्च कर चुके लड़ाके अब राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार के निर्णय को लेकर पशोपेश में हैं। प्रत्याशियों को आशंका है कि अगर सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की याचिका पर पटना हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराता है तो आगे क्या होगा। राज्य सरकार अगर विशेष आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी कराएगी तो चुनाव लंबे समय के लिए लटकना तय है।
नए सिरे से हुआ आरक्षण हुआ तो डूबेगी पूंजी
इससे पूरा समीकरण बदल जाएगा। नए सिरे से आरक्षण का निर्धारण होता है परेशानी बढऩा तय है। और तो और कई प्रत्याशियों ने बाजार से पैसा उधार लेकर चुनाव लडऩे में खर्च कर दिया। इस बीच आरक्षण को लेकर सियासी रार भी चरम पहुंचती दिख रही है।
सरकार तीसरे विकल्प पर अड़ी, फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगी
वहीं, अब दो ही विकल्प सामने बचते हैं कि या तो सरकार अति पिछड़ा आरक्षित सीटों को सामान्य मानकर चुनाव कराए या फिर सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट निर्देश का पालन करे। राज्य सरकार की ओर से साफ संदेश दे दिया गया है कि वो सीटों को सामान्य मानकर चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी में है। ऐसे में फैसला अब वही से होगा और तब तक चुनाव लटका रहना तय लग रहा है।