शुक्रवार, मार्च 29, 2024
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बिहार में बन रहा भू+माय समीकरण, बिहार की पॉलिटिक्स पर क्या होगा इसका इम्पैक्ट?

बिहार की धरती चाणक्य के काल से ही राजनीति की प्रयोगशाला रही है। चाणक्य ने इसी धरती पर अपने राजनीतिक कौशल से एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को मगध साम्राज्य की सिंहासन पर बिठाकर इतिहास रचा था। आजादी के बाद भी बिहार की धरती पर तरह-तरह के नए राजनीतिक प्रयोग देखने को मिलते रहे हैं। मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के रिजल्ट से संकेत मिल रहे हैं कि बिहार में एक नया रजनीतिक समीकरण ‘भू+माय’ बनने जा रहा है। यहां भू का मतलब भूमिहार, और माय का मतलब मुस्लिम+यादव है। यह नया राजनीतिक समीकरण आरजेडी प्रमुख लालू प्रयाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव मिलकर तैयार करने की कोशिश में जुटे हैं।

लालू प्रसाद यादव की फैमिली 2005 से सत्ता से बेदखल है। साल 2015 से 2017 तक लालू के बेटों को सत्ता में रहने का सुख तो मिला, लेकिन नीतीश कुमार ने जैसे ही हाथ खींचा पूरा परिवार एक बार फिर सत्ता के बनवास में चले गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को साथ लाकर नया कॉम्बिनेशन बनाने की कोशिश की, लेकिन वह पूरी तरह विफल रहा। इसके बाद 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने कांग्रेस और वामदलों को साथ लेकर मैदान में पूरे दमखम के साथ उतरे, लेकिन चंद विधायकों की कमी के चलते सत्ता का स्वाद चखने से मरहूम रह गए। सत्ता के इतने करीब पहुंचकर भी विपक्ष में बैठने की नौबत आने पर लालू परिवार समझ चुका है कि उनके सत्ता हासिल करने के रामबाण फॉर्म्यूले ‘मुस्लिम+यादव’ में समाज के कुछ और लोगों को जोड़ना होगा तभी उनके परिवार का सत्ता वनवास समाप्त हो सकता है। इसी के बाद तेजस्वी यादव ने बिहार में पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए ‘A टू Z’ फॉर्म्यूले पर काम करना शुरू किया।

तेजस्वी यादव ने ‘A टू Z’ फॉर्म्यूले में पहला स्टेप लेने में एक होशियारी दिखाई है। उन्होंने देखा कि एनडीए के सबसे बड़े घटक दल बीजेपी के संगठन और सरकार दोनों में भूमिहार समाज का उचित जिम्मेदारी नहीं मिलने से इस जाति में एक अलग किस्म का गुस्सा है। इसी बात को भांपते हुए तेजस्वी यादव ने बिहार विधान परिषद (MLC) के चुनाव में अपने पारंपरिक वोटर मुस्लिम+यादव में भूमिहारों को जोड़ने का काम किया। 2015 में भूमिहार समाज से आने वाले बाहुबली नेता अनंत सिंह पर बाढ़ में विनय उर्फ पुटुस यादव की हत्या करवाने के आरोप लगे थे। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार पर इतना दबाव बना दिया कि चुनाव से पहले अनंत सिंह को अरेस्ट करवाकर पटना के बेऊर जेल में बंद करवाना पड़ा था। इसके बाद लालू यादव कई मंचों से कहते सुने गए थे कि भूमिहार यादव को परेशान करेगा तो वह उसका अनंत सिंह जैसा हाल कर देंगे।

अनंत सिंह को साथ लाकर शुरू हुई भूमिहार समाज को तवज्जो देने की शुरुआत
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने उसी अनंत सिंह को मोकामा विधानसभा सीट से टिकट दिया और वह विधायक बने। ‘A टू Z’ फॉर्म्यूले के तहत एमएलसी चुनाव में तेजस्वी यादव ने अनंत सिंह की सलाह पर भूमिहार नेताओं कार्तिकेय मास्टर, इंजीनियर सौरभ और अजय सिंह को टिकट दिए और उन्होंने जीत भी दर्ज की। तेजस्वी यादव ने फैसले से भूमिहार समाज को मैसेज देने की कोशिश की कि अगर उन्हें इस जाति का सपोर्ट मिलता है तो वह आरजेडी में उन्हें उचित नेतृत्व और जिम्मेदारी देने को तैयार हैं।

एमएलसी चुनाव में तीन भूमिहार नेताओं को विधायक बनवाने का इनाम तेजस्वी यादव को बोचहां उपचुनाव में मिला। बोचहां में तेजस्वी यादव ने मल्लाह समाज से आने वाले अमर पासवान को कैंडिडेट बनाया था। इसके बाद भी इस सीट पर करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले भूमिहारों ने दिल खोलकर आरजेडी के कैंडिडेट को वोट दिया। करीब 30-35 साल बाद बिहार की पॉलिटिक्स में भूमिहार समाज के लोगों ने बीजेपी से अलग जाकर दिल खोलकर आरजेडी को वोट किया।

बीजेपी से नाराजगी के चलते बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा ने भूमिहारों और ब्राह्मणों को एकजुट करने के लिए ‘भूमिहार ब्राह्मण सामाजिक फ्रंट’ बनाया है। माना जा रहा है कि बोचहां में बीजेपी को हराने के लिए इसी फ्रंट ने जमीनी स्तर पर काम किया है। रिजल्ट आने के बाद फ्रंट के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मंत्री अजीत कुमार ने कहा, ‘हमारा फ्रंट किसी दल विशेष का समर्थन नहीं करता है। हमने तय कर लिया है कि हमें जो सम्मान देगा हम उसके साथ जाएंगे।’ इन दिनों चर्चा में रहे नारे ‘बाभन के चुड़ा यादव के दही दोनों भाई मिल जाए तो हो जाए सही’ पर अजित सिंह ने कहा कि निश्चित तौर पर सही बात है चुड़ा-दही सुबह का बढ़िया नाश्ता होता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस वक्त जो निक्कमी सरकार बैठी है वह सोचती है कि वह हमें जब चाहे जहां यूज कर लेगी तो ऐसा नहीं है। सियार आया, सियार आया के नाम पर डराकर करने वाली राजनीति से काम नहीं चलेगा। हमने निश्चित तौर से बोचहां चुनाव के जरिए अपनी ताकत का अहसास करा दिया है। उन्होंने कहा कि ये सिर्फ बोचहां तक ही सीमित नहीं रहेगा, बिहार ही नहीं अब पूरे देश में भूमिहार समाज एकजुट हो गया है।

उधर सारण से निर्दलीय एमएलसी बने सच्चिदानंद राय ने बेगूसराय में बीजेपी नेतृत्व पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बोचहां में एक वर्ग बीजेपी से काफी खफा था। मेरा टिकट कटना और वहां के एक नेता की अनदेखी करना बीजेपी पर भारी पड़ा और एक वर्ग ने इनको सबक सिखाया है। किसी दल में जाने के सवाल पर सारण MLC ने कहा कि अभी सभी लोगों से मिलना-जुलना हुआ है। ऑफर आना शुरू हुआ है बातें भी हुई हैं, मेरे सामने जो भी विकल्प अच्छा आएगा वह चुनूंगा। मैं जेडीयू में भी रहा हूं, बीजेपी में भी रहा हूं, लालू जी से अच्छे संबंध हैं। मेरी जीत से कुछ लोगों को मिर्ची लगी है, लेकिन अधिकतर लोग मेरी जीत से खुश हैं। बोचहां का रिजल्ट आया है तो असली झटका बीजेपी को लगा है। बताया जाता है कि सच्चिदानंद राय को जीत दिलाने में भी फ्रंट का सहयोग रहा।

यहां बता दें कि ‘भूमिहार ब्राह्मण सामाजिक फ्रंट’ 6 मई को पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में बड़ा आयोजन करने जा रही है। सूत्र बताते हैं कि इस सम्मेलन में बिहार के भूमिहार समाज के लोगों को मैसेज दिया जा सकता है कि उन्हें आगे किस तरह से राजनीतिक फैसले लेने हैं। बताया जा रहा है कि यह फ्रंट बिहार में एक नया राजनीतिक समीकरण बनाने और और कुछ बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। सूत्र बताते हैं कि इस फ्रंट के कार्यक्रमों को तेजस्वी यादव और लालू यादव का फुल सपोर्ट है। यहां तक कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव ने इसी फ्रंट के नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है कि वह समाज की उच्च जाति के लोगों को आरजेडी के साथ लाएं।

बिहार के सामाजिक और राजीनीतिक हालात पर गौर करें तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भूमिहार समाज यहां कितना बड़ा बदलाव करने में सक्षम है। बिहार में पिछले तीन दशक से ओबीसी नेताओं का राज है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस बदलाव में उच्च जातियों खासकर भूमिहारों का बड़ा रोल रहा है। जब लालू यादव ने ‘भूरा बाल साफ करो’ (भूमिहार+राजपूत+लाला) का नारा दिया तब भूमिहार समाज ने सबसे पहले खुलकर इसकी मुखालफत शुरू की। भूमिहार समाज ने खुलकर लालू फैमिली के खिलाफ एकजुट होकर बीजेपी को वोट देना शुरू किया, जिसके बाद अन्य उच्च जातियों ने फॉलो किया।

बिहार में भूमिहार करीब 6%, ब्राह्मण 5.5% और राजपूत 5.5 फीसदी आबादी है। लेकिन इस जाति के लोग बेहद वोकल होते हैं। बिहार की अधिकतम जमीन जायदाद इनके पास होने के चलते ये यह समाज दूसरी जाति के वोटरों को भी प्रभावित करते हैं। ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी अपने कोर वोटर भूमिहारों और अन्य उच्च जाति के लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाती है या फिर तेजस्वी यादव बिहार में बड़े स्तर पर ‘A टू Z’ फॉर्म्यूले को सफल बनाने में कामयाब रहते हैं।

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