बिहार में निकाय चुनावों को लेकर भाजपा और नीतीश कुमार के बीच चल रहे आरोप-प्रत्यारोप के बीच पटना हाईकोर्ट ने स्थिति साफ कर दी है। बिहार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी और ईबीसी वर्ग के आरक्षण पर रोक के खिलाफ नीतीश सरकार ने पटना हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन यानी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला दे दिया है। अदालत ने अब आदेश दिया है कि सरकार आरक्षण के साथ बिहार निकाय चुनाव करा सकती है। गौरतलब है कि महागठबंधन सरकार और विपक्षी दल बीजेपी दोनों एक-दूसरे पर आरक्षण को खत्म करने का आरोप लगा रहे हैं।
पटना हाईकोर्ट ने बुधवार को रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि संबंधित सांविधिक आयोग द्वारा किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर बिहार में निकाय चुनाव अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के साथ हो सकते हैं। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश संजय करोल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 4 अक्टूबर के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की समीक्षा याचिका पर दिया। गौरतलब है कि पहले के आदेश में हाई कोर्ट ने आरक्षण को अवैध करार देते हुए इस आधार पर चुनाव कराने पर रोक लगा दी थी। अदालत ने तब कहा था कि सामान्य वर्ग से संबंधित आरक्षित सीटों को पुन: अधिसूचित करके नए सिरे से चुनाव कराए जाएं।
महाधिवक्ता ललित किशोर ने बताया कि रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने अपनी दलीलों से अदालत को संतुष्ट कर दिया जिसके बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया। उन्होंने बताया कि हमने अदालत को बताया कि राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित उन मानदंडों को पूरा करने के लिए तैयार है। जिनको उच्च न्यायालय ने आरक्षण प्रणाली को खत्म करते हुए उद्धृत किया था।
शहरी स्थानीय निकाय चुनाव पहले दो चरणों में 10 अक्टूबर और 20 अक्टूबर को निर्धारित किए गए थे, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव टाल दिए थे। वहीं, इस बीच, विपक्षी भाजपा ने सरकार पर आरोप लगाया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने एक बयान में कहा कि नीतीश कुमार उन सैकड़ों उम्मीदवारों के लिए स्पष्टीकरण देते हैं जिन्होंने प्रचार पर पैसा खर्च किया था। अब उन्हें फिर से प्रक्रिया शुरू करनी होगी। यह उनके हठ के कारण था कि राज्य की आरक्षण प्रणाली में कमियों को समय पर संबोधित नहीं किया गया था।