मैक्स वेबर ने धर्म का सूक्ष्म एवं वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया है। इनके अध्ययन के पश्चात ही समाजशास्त्र में धर्म का अध्ययन गहराई से किया जाने लगा और अंततः “धर्म के समाजशास्त्र (sociology of religion)” ने समाजशास्त्र के अंतर्गत एक स्वतंत्र शाखा के रूप में जन्म लिया।
मैक्स वेबर ने अपने विद्यार्थी जीवन में ही प्रोटेस्टेंट धर्म के “काल्विन मत” का अध्ययन करना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपने अध्ययन के आधार पर एक मान्यता बनाई कि धर्म का मूल संबंध केवल पूजा और विश्वासों की व्यवस्था से नहीं बल्कि धर्म का सार उसकी वे नीतियां और आचार हैं जो एक विशेष धर्म के मानने वालों के आर्थिक तथा सामाजिक व्यवहारों को प्रभावित करते हैं।
अपनी इसी परिकल्पना के आधार पर मैक्स वेबर ने संसार के अनेक धर्मों विशेष करके प्रोटेस्टेंट एवं कैथोलिक धर्म का सूक्ष्म अध्ययन किया और अपने विचारों को उन्होंने अपनी पुस्तक प्रोटेस्टेंट धर्म तथा पूंजीवाद का सार (Protestant ethics and spirit of capitalism) नामक पुस्तक में संकलित किया।
मैक्स वेबर को “धर्म के समाजशास्त्र का जनक” भी कहा जाता है। अध्ययन के द्वारा मैक्स वेबर ने निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा की थी-
सर्वप्रथम, मैक्स वेबर ने अपने अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया था कि कैथोलिक धर्म को मानने वाले विद्यार्थियों की तुलना में प्रोटेस्टेंट धर्म को मानने वाले विद्यार्थी औद्योगिक शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश लेने के लिए अधिक प्रयत्नशील रहते हैं।
दूसरा, वेबर ने निष्कर्ष निकाला कि यूरोप के अनेक देशों में आर्थिक और राजनीतिक संकट के समय प्रोटेस्टेंट धर्म के मानने वाले लोगों ने परिश्रम के द्वारा अपनी आर्थिक दशा को फिर से सुदृढ़ बना लिया है जबकि कैथोलिक धर्म के अनुयाई ऐसा नहीं कर सके।
तीसरा, वेबर ने कहा कि यूरोप के जिन देशों में प्रोटेस्टेंट धर्म का प्रभाव अधिक है वहां पूंजी का विकास उन देशों की तुलना में अधिक हुआ है जहां कैथोलिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या अधिक थी।
इन सभी अध्ययन के द्वारा मैक्स वेबर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संसार के सभी प्रमुख धर्मों का अध्ययन करके व्यक्ति के व्यवहारों पर धार्मिक आचारों के प्रभावों को समझा जा सकता है। अलग-अलग धर्म का सूक्ष्मता से अध्ययन करने के बाद वेबर ने यह निष्कर्ष निकाला कि साधारण मनुष्य अपने सांसारिक आकांक्षाओं के कारण ही धर्म से प्रभावित होते हैं। वे धर्म से इसलिए प्रभावित नहीं होते कि बड़े-बड़े धार्मिक विचारों से उनका कोई विशेष लगाव होता है। विभिन्न समाज में धार्मिक आचारों के प्रभाव को ज्ञात करने के साथ ही वे इस तथ्य को विशेष रुप से जानने की कोशिश कि क्या प्रोटेस्टेंट धर्म के आचारों और पूंजीवाद के विकास में करता कोई संबंध है।
वेबर का यही दृष्टिकोण और अध्ययन धर्म के समाजशास्त्र का मुख्य आधार बना।
Ananya Swaraj,
Assistant Professor, Sociology