Homeबिहार के अखबारों मेंजहां गरजती थीं नक्सलियों की बंदूकें, वहां पहली बार हो रही केले की खेती, दूसरों के लिए प्रेरणा बना ये किसान

जहां गरजती थीं नक्सलियों की बंदूकें, वहां पहली बार हो रही केले की खेती, दूसरों के लिए प्रेरणा बना ये किसान

बिहार के अति नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में भारत सरकार के राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत फलदार पौधों की खेती अब एक विकल्प बनकर उभरा है। खेती-किसानी में रुचि रखनेवाले युवाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने के लिए फलदार पौधों की खेती एक विकल्प के रूप में उभरी है। जिले के एक युवा किसान ने केले की खेती शुरू की है।

बिहार के अति नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में अति नक्सल प्रभावित मदनपुर प्रखंड के दक्षिणी उमगा पंचायत के रामाबांध गांव में अब केले की खेती हो रही है। यहां 15 कट्ठे में एक प्रगतिशील युवा किसान ने प्रयोग के तौर पर केले की खेती शुरू की है। यह वह इलाका है, जहां कभी विकास नाम की कोई चीज नही थी। यहां नक्सलियों की बंदूकें गरजती थी। आये दिन धमाके होते थे। लोगों के दिलो-दिमाग पर नक्सलियों का खौफ हावी रहा करता था। लोग हमेशा दहशत में रहते थे। उन्हें इस बात का हमेशा डर सताता रहता था कि खेती करने के दौरान कहीं खेत में नक्सलियों की ओर से प्लांट किया गया आइईडी बम फट न जाएं। ऐसे में इलाके में खेती पर भी संकट था।

युवा किसान रंजय सिंह भोक्ता ने शुरू की 15 कट्ठा में केले की खेती​अब परिस्थितियां बदली और केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के माध्यम से सघन एंटी नक्सल अभियान शुरू किया। अभियान चलने से इलाके से नक्सलियों के पैर उखड़े। धीरे-धीरे शांति और अमन का माहौल बना। लोग खेती की ओर फिर से उन्मुख हुए। और अब केले की खेती जैसा नवीन प्रयोग भी होने लगा है। रामाबांध के युवा किसान रंजय सिंह भोक्ता स्पेशल केले की खेती की वजह से इलाके में चर्चा में है। उन्होंने तीन माह पहले 15 कट्ठा केले की खेती शुरू की है।​नक्सल प्रभावित पहाड़ की वादियों में केले की खेती​रंजय को खेले की खेती की प्रेरणा औरंगाबाद के जिला उद्यान विभाग से मिली, जहां से आवश्यक जानकारी और सहायता प्राप्त कर नक्सल प्रभावित क्षेत्र की पहाड़ की वादियों में केले की खेती शुरू की।

किसान रंजय भोक्ता ने बताया कि केला की खेती करने का इरादा होने पर पहले अपने पंचायत के पूर्व मुखिया उपेंद्र यादव से संपर्क किया। पूर्व मुखिया ने उनकी मुलाकात जिला उद्यान पदाधिकारी से कराई। इसके बाद उन्हे ट्रेनिंग मिली। ट्रेनिंग मिलने के बाद उन्होंने केले की खेती प्रारंभ की। ​5 रुपये प्रति पौधे की दर से मिला केले का G-9 पौधा: किसान रंजय​उन्होंने बताया कि उन्हें 5 रुपये प्रति पौधा की दर से केले की G-9 किस्म का पौधा उद्यान विभाग से प्राप्त हुआ, जो महज नौ माह में तैयार हो जाता है। उन्होंने 15 कट्ठे में तकरीबन 500 केले के पौधे लगाए। रंजय ने कहा कि इस इलाके में पहली बार केले की खेती की जा रही है। उन्होंने बताया कि जी-9 किस्म का केला बहुत ही पौष्टिक है और इसकी खेती, उद्यान विभाग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार कर रहे हैं।

किसान रंजय ने कहा कि निःसंदेह केले की खेती से वे आर्थिक रूप से मजबूत होंगे।​परंपरागत खेती में नुकसान के चलते बदला किसानों का रुझान: उपेंद्र यादव​वहीं किसान को केले की खेती के लिए प्रेरित करनेवाले समाजसेवी उपेंद्र यादव ने बताया कि परंपरागत खेती में होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए किसान खेती के ट्रेंड को बदलने में लगे हैं। किसानों का फलदार पौधों की खेती के प्रति रुझान बढ़ा है। यही रुझान यहां देखने को मिल रहा है।

पहले आमतौर पर मदनपुर प्रखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में धान और गेहूं की व्यापक पैमाने पर खेती होती रही है। इधर पिछले कई सालों से मदनपुर प्रखंड के किसानों को मौसम भी साथ नहीं दे रहा है। समय पर बारिश नहीं होने के कारण किसानों को धान तथा गेहूं की फसल में काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है। धान और गेहूं जैसे फसल में हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए किसान आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। इसके तहत उद्यान विभाग द्वारा किसानों को केले और अन्य फलदार पौधों की खेती के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। बहरहाल केले की खेती ने रंग दिखाया तो पहले ‘खूनी’ गलियारा कहा जाने वाला यह इलाका निःसंदेह हरा गलियारा के रूप में प्रसिद्ध हो सकेगा।

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