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क्या शराबबंदी के बाद बिहार में जेल बन गए ‘नरक’?

पटना : ‘साइबर क्राइम, शराबबंदी कानून का उल्लंघन समेत सूबे में कई अपराध बढ़े हैं। बहुत सारी चीजें घट रही हैं, जो पहले नहीं थी। इसके कारण जेल में कैदियों की संख्या बढ़ी है। इन्हें रखने की उचित व्यवस्था की जा रही है। कहीं जेल में कमरे बनाए जा रहे हैं, तो कहीं जेलों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है।’ ये बातें ठीक सात महीने पहले बिहार सरकार में गृह विभाग के प्रभारी मंत्री विजेंद्र यादव ने विधान परिषद में कही थी। विधान परिषद में एक सवाल के जवाब में सरकार की ओर से विजेंद्र यादव जवाब दे रहे थे। उन्होंने ये भी कहा था कि दो वर्षों में बीस हजार नए कैदी जेलों में पहुंचे हैं।

क्या है नेताओं की राय
‘बिहार में जेलों की स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि मैं पांच-छह बार जेल गया हूं। जेलों में हमेशा क्षमता से ज्यादा कैदी ही बंद होते हैं। इसमें कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि बिहार ही नहीं, पूरे देश में जेलों के अंदर की स्थिति एक जैसी है। कैदियों का स्ट्रेंथ हमेशा बढ़ा रहता है।

जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी बंद
अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद राज्य के जेलों में कैदियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ। शराब पीने वाले, बेचने वाले और तस्करी करने वाले पकड़े जाते रहे। सरकार उन्हें जेलों में बंद करती रही। हालांकि, जिस रफ्तार में लोग गिरफ्तार हुए, उस रफ्तार में उनकी सुनवाई नहीं हुई। परिणाम ये हुआ कि जेलों में क्षमता से दोगुने कैदी भर गए। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। राज्य के 59 जेलों में जहां 46,669 कैदी रह सकते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वहां बीते दिसम्बर 2021 तक 66,307 कैदी बंद थे। वर्तमान में ये संख्या बढ़कर और ज्यादा हो गई है। कैदियों की ये संख्या जेल में कैदियों को रखने की कुल क्षमता से 19,638 ज्यादा है। वहीं, साल भर पहले यानी दिसम्बर 2020 में कैदियों की संख्या मात्र 51,154 थी। यानी साल भर में देखा जाए, तो कैदियों की संख्या में 15 हजार से अधिक की वृद्धि हुई।

पटना के बेऊर जेल की स्थिति खराब
राजधानी पटना में स्थित सूबे के सबसे बड़े जेल बेऊर जेल की स्थिति और भी दयनीय है। जेल में क्षमता 2 हजार 360 कैदियों के रहने की है, लेकिन जेल के अंदर 5 हजार 534 कैदी बंद हैं। पिछले साल यानि दिसंबर 2021 के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि राज्य के 13 जेलों की स्थिति खराब है। इन 13 जेलों में क्षमता से 200 फीसदी ज्यादा कैदी बंद हैं। कुछ जेलों में ये प्रतिशत 3 सौ फीसदी से भी अधिक है। उस श्रेणी में पटना का बेऊर जेल भी शामिल है। इसी साल 8 मई 2022 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम 2020 में छपरा जेल में घटी एक घटना की जांच करने पहुंची। जहां जेल में स्पिरिट का सेवन करने से एक कैदी की मौत हो गई थी। इस दौरान टीम ने बेऊर केंद्रीय कारा और छपरा मंडल कारा का निरीक्षण किया। टीम ने दोनों जेलों के अंदर की स्थिति को नारकीय पाया।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जताई थी चिंता
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट जेल से जुड़े राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि एक बैरक में क्षमता से ज्यादा कैदी रखे गए हैं। 35 की क्षमता वाले बैरक में 90 कैदी बंद हैं। उस समय एनएचआरसी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दोनों जेलों में स्वास्थ्य सुविधा का घोर आभाव है। स्वच्छता बिल्कुल नहीं है। सुरक्षा की समस्या गंभीर है। टीम ने महिला कैदियों के बारे में जो रिपोर्ट दी, वो और भी चौंकाने वाली थी। रिपोर्ट में कहा गया कि महिला कैदियों में गंभीर चर्म रोग की समस्या आम है। कैदियों के मेडिकल और हेल्थ रिकॉर्ड को लेकर लापरवाही बरती जा रही है। टीम ने जेलों में स्वच्छता, ड्रेनेज सिस्टम, सीवरेज सिस्टम सुधारने की सलाह दी। एनएचआरसी की टीम ने कैदियों को राज्य सरकार की ओर से कानूनी सहायता देने का भी सुझाव दिया।

‘सरकार को ठोस पहल करनी होगी’
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने रिपोर्ट देने के बाद एक बात भी कही थी। टीम ने कहा था कि निरीक्षण का उद्देश्य कैदियों की स्थिति में सुधार लाना है। टीम ने माना कि सबसे ज्यादा कैदी शराबबंदी कानून के उल्लंघन में बंद हैं। जेलों की संख्या स्थिर है, जबकि कैदियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार की जेल में कुल 4 लाख 7 ह जार 750 कैदियों के रहने की क्षमता है। फिलहाल, जेलों में साढ़े छह लाख से ज्यादा कैदी बंद हैं।


क्या कहते हैं बिहार के पूर्व डीजीपी

जेलों में कैदियों की स्थिति पर बातचीत में बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद कहते हैं। ‘जब भी अपराध होता है। अपराधी को जेल में रखा जाता है। कई बार सजा के पहले भी जेल में बंद कर दिया जाता है। जेल में रखने का मकसद होता है। कैदी ट्रायल के दौरान भाग नहीं सके। गवाहों को धमकाए नहीं। सबूतों से छेड़खानी नहीं करे। ये मुख्य कारण है अपराधियों को जेल में बंद रखने का। प्रश्न ये है कि शराब पीकर कोई पकड़ा गया। उसको बंद कर देते हैं जेल में। ये बिल्कुल आवश्यक नहीं है। आप जब शराब पीने के आरोपी को पकड़ते हैं। उसी समय दिनभर में ट्रायल करा दीजिए। बंद करने का मतलब नहीं। फाइन लगाकर मामले को खत्म कीजिए। वो साक्ष्य के साथ छेड़खानी क्या करेगा। वो शराब पी चुका है। आप उसे सजा दीजिए बात खत्म कीजिए। जेल वहीं लोग जाएं, जो शराब बेच रहे हैं। जेलों से कैदियों की संख्या अपने आप घट जाएगी। कैदियों की संख्या को कम करना सरकार की महती जिम्मेदारी है। इससे जेलों के अंदर संख्या पर असर पड़ेगा और स्थिति विकट होने से बच जाएगी’।

सरकार ने किया था शराबबंदी कानून में संशोधन
हालांकि, शराब पीने के आरोप में बंद कैदियों की बढ़ती संख्या का असर कहें, या फिर सरकार का अपना फैसला। हाल में सरकार ने बिहार विधानसभा में मद्य निषेध और उत्पाद संशोधन विधेयक-2022 पास कर दिया था। जिसमें ये प्रावधान किया गया था कि पहली बार शराब पीने वालों को जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाएगा। आपको बता दें कि प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं। उल्लंघन करने वालों में अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और गरीब लोग हैं। साधारण मामलों में जमानत की सुनवाई में भी अदालतों में एक साल का समय लग रहा है। स्थिति ये हुई कि जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ने लगी। जेल में स्पेस घटने लगा और कैदी गंभीर बीमारी से जूझने लगे।

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