शुक्रवार, मार्च 29, 2024
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बिहार समेत दूसरे राज्यों की बहुएं अब नहीं लड़ सकेंगी झारखंड पंचायत चुनाव

झारखंड में पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियां जोरों से आगे बढ़ रही हैं। इस बीच हेमंत सोरेन सरकार के एक फैसले की वजह से बिहार-यूपी या फिर दूसरे राज्यों से शादी के बाद आईं ‘बहुएं’ आरक्षित कैटेगरी की सीट पर पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि झारखंड में आगामी पंचायत चुनाव में दूसरे राज्यों से जारी जाति प्रमाण पत्र वाले शख्स की दावेदारी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से हाल ही में 2019 के एक आदेश को लागू करने का फैसला लिया गया, जिसके चलते ये ‘बहुएं’ राजनीतिक चुनाव से बाहर हो गई हैं।

झारखंड में मुखिया और वार्ड सदस्य के पदों दावेदारी की इच्छुक दर्जनों महिलाओं को इस नियम की वजह से तगड़ा झटका लगा है। उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, क्योंकि जांच में पाया गया कि उनका कास्ट सर्टिफिकेट बिहार या फिर दूसरे राज्यों से जारी किया गया है। जो अब झारखंड में स्वीकार नहीं है। उम्मीदवारी पर लगे इस झटके से ये महिलाएं परेशान हैं और सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं।

43 वर्षीय संथाल महिला कैथ्रीन टुडू ने कहा कि ये सरकार की अन्यायपूर्ण नीति है और राजनीति में महिलाओं को हाशिए पर रखती है। मुझे अपनी पंचायत का समर्थन है और इस अन्याय के खिलाफ लड़ूंगी। कैथ्रीन टुडू ने गोड्डा जिले के करमातार पंचायत से मुखिया पद के लिए नामांकन दाखिल किया था, जिसे 25 अप्रैल को खारिज कर दिया गया। कैथ्रीन टुडू के मुताबिक, वो बिहार के पूर्णिया जिले की रहने वाली थीं और 1989 में उनकी शादी हुई थी।

गिरिडीह के जमुआ में भी मुखिया पद के लिए पांच समेत कम से कम 40 दावेदारों को हाल ही में बिहार के जारी जाति प्रमाण पत्र पेश करने की वजह से चुनाव में दावेदारी से रोक दिया गया था। इसी इलाके में सामने आए एक और मामले पर नजर डालें तो रेबेका मरांडी ने 2015 में पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और चंदना पंचायत से जीत हासिल की थी। लेकिन इसी साल 26 अप्रैल को रेबेका ने उसी पद के लिए नामांकन किया तो उनके दस्तावेजों की जांच के दौरान खारिज कर दिया गया।

रेबेका मरांडी ने बताया कि 2012 में उनकी शादी हुई थी। वो बिहार के बांका जिले से हैं, लेकिन अब उनका घर झारखंड में है। उन्होंने सरकार के फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जहां देश में महिलाओं को शादी के बाद अपने माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है, वहीं राज्य की मशीनरी ने अब उन्हें प्रवासी बना दिया है। हमसे बुनियादी अधिकार ही छीन लिया है।

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