पीरियड्स का दर्द एक लड़की ही समझ सकती है। पेट में ऐंठन, चलने में परेशानी और कमर दर्द के साथ ऑफिस में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं होता। लेकिन फिर भी महिला कर्मचारी को माहवारी के दौरान छुट्टी दी जाए या नहीं, यह अब भी बहस का विषय बना हुआ है। हालांकि कुछ देशों में इसकी शुरुआत बहुत पहले हो गई थी।
कई देशों में महिलाओं को मिला आराम
महिलाओं को हर महीने पीरियड्स होते हैं। यह समय उनके लिए किसी पीड़ा से कम नहीं होता है। इस जरूरत को देखते हुए द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद 1947 में जापान ने नए श्रम कानून में पीरियड्स लीव को शामिल किया। 1922 में सोवियत संघ ने इसके लिए नेशनल पॉलिसी बनाई थी। वहीं, इंडोनेशिया में इसकी शुरुआत 1948 में की गई। इसके बाद कई देशों ने महिलाओं का दर्द समझते हुए छुट्टी देने का प्रावधान किया। आज ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, ताइवान, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया जैसे देश माहवारी के लिए छुट्टी दे रहे हैं।
लालू प्रसाद सरकार ने 2 जनवरी 1992 को दी सौगात
भारत में बिहार पहला ऐसा राज्य बना जहां साल 2 जनवरी 1992 से महिला कर्मचारियों को 2 दिन की पीरियड्स के लिए छुट्टी दी जा रही है। इसके लिए उन्होंने 32 दिन तक हड़ताल की थी जिसके बाद उन्हें यह हक मिला। इसकी शुरुआत लालू प्रसाद सरकार ने की थी। इसके बाद 1997 में मुंबई में स्थित कल्चर मशीन ने 1 दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की। साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने पीरियड लीव देने का ऐलान किया। इस समय भारत में 12 कंपनी पीरियड लीव दे रही हैं जिसमें बायजू, स्विगी, मातृभूमि, बैजू, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर जैसी कंपनी शामिल हैं।
क्या हर महिला को होती है परेशानी
दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल की गायनाकोलॉजिस्ट डॉक्टर माला श्रीवास्तव ने बताया कि हर किसी की मेंस्ट्रुअल साइकिल अलग-अलग होती है। जरूरी नहीं कि हर महिला दर्द से गुजरे। ज्यादातर मामलों में दर्द तभी होता है जब महिलाओं के पीरियड्स में रुकावट आ रही हो। महिलाओं के शरीर में प्रोस्टाग्लैंडीन रसायन होता है। जिनमें यह ज्यादा होता है, वह यूट्रस की मसल्स को सिकोड़ देता है। इससे तेज दर्द होता है। इसके अलावा एंडोमेट्रियोसिस, पेलविक इनफ्लामेट्री (PID) और प्रीमेन्स्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (PMDD) भी पीरियड्स में पेट दर्द , कमर दर्द और माइग्रेन देता है। अगर किसी महिला को मीनोपॉज के दौरान दर्द हो तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अधिकतर महिलाओं को पहला बच्चा होने के बाद इस दर्द से छुटकारा मिल जाता है।
लोकसभा में उठा मुद्दा, पर कुछ नहीं हुआ
साल 2017 में देश में पहली बार अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सदस्य निनॉन्ग एरिंग ने द मेन्स्ट्रुएशन बेनिफिट बिल 2017 का प्रस्ताव रखा। इसमें पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं के लिए 4 दिन की पेड पीरियड लीव देने की बात कही गई। साथ ही कहा गया कि अगर महिला इस दौरान छुट्टी नहीं लेना चाहती तो उसे 4 दिन के लिए दिनभर में 2 बार आधे घंटे का आराम दिया जाना चाहिए। अगर कोई कंपनी मालिक ऐसा नहीं करे तो उस पर जुर्माना और जेल भेजने की सजा का प्रावधान होना चाहिए। हालांकि इस प्रस्ताव पर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ।
पीरियड्स के बारे में बात करने में असहज
ऑस्ट्रेलिया स्थित मेलबर्न में विक्टोरियन वुमन ट्रस्ट एंड सर्कल इन ने 2021 में एक सर्वे किया। इसमें 700 महिलाएं शामिल हुईं। इसमें सामने आया कि 70 फीसदी महिलाएं अपने मैनेजर से पीरियड्स के बारे में बात करने में असहज महसूस करती हैं। वहीं, 83% महिलाओं ने कहा कि इसका काम पर बुरा असर पड़ेगा। वहीं, साल 2021 में ब्रिटेन के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की स्टडी के मुताबिक मीनोपॉज से गुजर रहीं महिला कर्मचारी नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर होती हैं। 2,400 में से 25% महिलाओं ने कहा कि उनके लक्षण, जागरूकता की कमी, सहकर्मियों के सहयोग का अभाव उनकी नौकरी छोड़ने की संभावना को बढ़ा देता है। वहीं, 22% ने कहा कि यह सब कारण उनके कदम रिटायरमेंट की तरफ बढ़ाते हैं।