15 अगस्त 2011, पटना | बिहार में आम लोगों को निर्धारित समय सीमा के भीतर कुछ चुनी हुई लोक सेवाएं उपलब्ध कराने वाला क़ानून 15 अगस्त 2011 से लागू किया जा रहा है.
यह क़ानून ‘बिहार लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम 2011’ के नाम से जाना जाएगा. इसके तहत राज्य सरकार ने फ़िलहाल दस विभागों से जुड़ी 50 सेवाएँ सूचीबद्ध की है.
इनमें राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और ज़मीन-जायदाद के दस्तावेज़ दिए जाने के अलावा आवास, जाति, चरित्र और आमदनी से संबंधित प्रमाण पत्र दिए जाने जैसी सेवाएँ प्रमुख हैं.
इस अधिनियम का सबसे ख़ास प्रावधान यह है कि तय की गई अवधि में आवेदकों को लोक सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा सकने वाले सरकारी कर्मचारी या अधिकारी दंडित होंगे.
अधिनियम
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 65वें स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर आयोजित राजकीय समारोह में इस क़ानून का बढ़-चढ़ कर बखान किया.
यह ऐसा अधिनियम है, जो राज्य के उन तमाम लोगों को सरकारी दफ़्तरों या बाबुओं के चक्कर लगाने और चढ़ावा (घूस) देने से राहत दिलाएगा, जिन्हें समय पर विभिन्न लोक सेवाएं हासिल करने का हक़ है. इसलिए अब उनके इस अधिकार को और क़ानूनी मज़बूती देने और लापरवाह लालची सरकारी कर्मियों पर सख़्ती बरतने के ठोस उपाय किए जा रहे हैं – नीतीश कुमार
इसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी सरकार की कथित ज़ोरदार मुहिम से जोड़ते हुए उन्होंने कहा, ”यह ऐसा अधिनियम है, जो राज्य के उन तमाम लोगों को सरकारी दफ़्तरों या बाबुओं के चक्कर लगाने और चढ़ावा (घूस) देने से राहत दिलाएगा, जिन्हें समय पर विभिन्न लोक सेवाएं हासिल करने का हक़ है. इसलिए अब उनके इस अधिकार को और क़ानूनी मज़बूती देने और लापरवाह लालची सरकारी कर्मियों पर सख़्ती बरतने के ठोस उपाय किए जा रहे हैं.” लेकिन दूसरी ओर इस क़ानून के तहत दोषी कर्मचारी या अधिकारी को दंडित करने के जो प्रावधान किए गए हैं, वे विश्लेषकों की नज़र में बहुत ढीले, मामूली और बेअसर जैसे हैं.
ढाई सौ रूपए से लेकर अधिकतम पांच हज़ार रूपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है और ज़रूरत पड़ी तो विभागीय कार्रवाई का डर दिखाया गया है.
जिस समय पटना के गांधी मैदान में मुख्यमंत्री का इस बाबत भाषण हुआ, उसी वक़्त वहाँ इस पर कुछ विपरीत जन प्रतिक्रियाएं भी उभरने लगीं.
लोग कह रहे थे, ”जिस तरह दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार में यहाँ घूसखोरी और अफ़सरशाही बढी है, उससे यही लगता है कि अब तक इस पर आँख बंद रखने वाली मौजूदा सरकार अब अपने सियासी लाभ और लोगों को झांसा देने के लिए इस तरह के क़ानून का प्रचार करवा रही है. क्या ख़ुद नीतीश जी को पिछले पांच साल की अपनी कथनी और करनी में अंतर का पता नहीं है?” लेकिन इस तरह की रोषपूर्ण टिप्पणियों से अलग राय रखने वाले कई लोगों ने ‘लोकसेवा के अधिकार अधिनियम’ को भ्रष्टाचार कम करने की दिशा में नीतीश सरकार का एक सराहनीय क़दम माना.
उनका वही पुराना तर्क है कि सिर्फ़ सरकार या शासन-तंत्र को गाली देना ठीक नहीं, क्योंकि रिश्वत के लेन-देन में अपनी सुविधा और स्वार्थ देखने वाले कई आम लोग भी भ्रष्टाचार के पोषक बन जाते हैं.
उम्मीद
बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इस संबंध में तैयार नियमावली की अधिसूचना गत तीन मई को ही जारी कर दी गई थी.
सरकारी दफ़्तरों में कर्मियों और ज़रूरी साधनों की कमी और सबसे ज़्यादा आवेदनों पर कार्रवाई की निगरानी ठीक से नहीं हो पाने की जो आशंकाएँ बनी है, उसे दूर करना सचमुच बड़ी चुनौती है. लेकिन इसके लिए तकनीकी क्षमता विकसित करने में हम लगे हुए हैं और सफलता भी मिल रही है – दीपक कुमार
विभागीय प्रधान सचिव दीपक कुमार संबंधित नियमावली के ठीक से लागू होने में कठिनाई क़बूल करते हुए भी उसे दूर कर लेने की उम्मीद रखते हैं.
उन्होंने कहा, ”सरकारी दफ़्तरों में कर्मियों और ज़रूरी साधनों की कमी और सबसे ज़्यादा आवेदनों पर कार्रवाई की निगरानी ठीक से नहीं हो पाने की जो आशंकाएँ बनी है, उसे दूर करना सचमुच बड़ी चुनौती है. लेकिन इसके लिए तकनीकी क्षमता विकसित करने में हम लगे हुए हैं और सफलता भी मिल रही है.”
इस क़ानून का सबसे कमज़ोर पक्ष ये माना जा रहा है कि जो तय समय-सीमा होगी, उसकी अंतिम तिथि से पहले कोई लोक सेवा उपलब्ध कराने में रिश्वत का खेल हो सकता है. जैसे कि दो-तीन दिनों में किसी को आवासीय प्रमाणपत्र लेना अत्यंत ज़रूरी हो, तो वह 21 दिनों की निर्धारित समय-सीमा तक इंतज़ार करने के बजाय घूस देकर जल्दी काम करा लेने को विवश हो सकता है.
और भी कई ऐसे छेद इस लोक सेवा के अधिकार क़ानून में तलाश लिए जा सकते हैं, जिनके रास्ते यहाँ रिश्वतखोरी चालू रह सकती है.