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सामाजिक अनुसंधान में उपकल्पना (Hypothesis in Social Research)

गुड और स्केट्स ने अपनी पुस्तक “मेथड्स ऑफ रिसर्च” (1958) में कहते हैं, “उपकल्पना एक अनुमान है जिसे अंतिम अथवा अस्थाई रूप में किसी निरीक्षक तथ्य अथवा दशाओं की व्याख्या हेतु स्वीकार किया गया हो एवं जिससे अन्वेषण को आगे पथ प्रदर्शन प्राप्त होता हो।”

लुंड वर्क अपनी पुस्तक सोशल रिसर्च (1942) में कहते हैं,”एक उपकल्पना एक सामाजिक या काम चलाऊ सामान्यीकरण है जिसके वैधता की जांच शेष रहती है।”

हेज के अनुसार उपकल्पना के दो प्रकार हैं-
पहला, सरल उपकल्पना: इसमें सामान्य उपकल्पना आती है तथा किन्ही दो चरों के बीच सह-संबंध की स्थापना की जाती है।
दूसरा, मिश्रित उपकल्पना: मिश्रित उपकल्पना वह है जिसमें चारों की संख्या एक से अधिक रहती है इसमें सह-संबंध सांख्यिकी की सहायता से ज्ञात किए जाते हैं।

उपकल्पना का उद्देश्य: जहोदा एवं कुक के अनुसार उपकल्पनाओं का निर्माण तथा प्रमाणिकता, वैज्ञानिक अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है।

उपकल्पना का महत्व:
अनुसंधान का एक निश्चित उद्देश्य होता है उपकल्पना के माध्यम से ही अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्य की प्राप्ति करता है। अध्ययन और ज्ञान का क्षेत्र अत्यंत विशाल है ऐसे में उपकल्पना अनुसंधान के क्षेत्र को सीमित करता है। उपकल्पना के द्वारा अध्ययन स्पष्ट होता है तथा यह ज्ञात होता है कि अध्ययन का कार्य क्या है।

Ananya Swaraj
Assistant Professor , Sociology

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