जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में, सिद्धदोष नेताओं को चुनाव लड़ने के अयोग्य माना है। लेकिन मुकदमे का सामना करने वाले, चाहे कितने भी गंभीर आरोप हों, चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। देश भर में 1765 एमपी और एमएलए के खिलाफ 3800 से अधिक आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 3045 मामले लंबित हैं।
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के कारण
- अनेक राजनेताओं द्वारा अपने वोटबैंक में वृद्धि हेतु अपराधियों के बाहुबल का उपयोग किया जाता है
- आपराधिक गतिविधियाँ विशाल चुनावी व्यय हेतु धन उपलब्ध कराती हैं.
- मतदाता सामान्यतया एक उम्मीदवार के इतिहास, योग्यता तथा उसके विरुद्ध लंबित मामलों के प्रति जागरूक नहीं होते.
- न्यायालय में अपराधी-सह-राजनेताओं के विरुद्ध हजारों मामले सालों-साल तक लंबित रहता हैं.
- राजनीति के अपराधीकरण के लिए पार्टी सरकार की व्यवस्था भी जिम्मेदार है। पार्टी के नेता मतदाताओं को वादे देते हैं। जिसका उद्देश्य चुनाव जीतना है। चुनाव जीतने के बाद अपने वादों को किसी भी तरह पूरा करती है जो राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाता है.
- राजनीति के अपराधीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कारण नेताओं और नौकरशाही के बीच अपवित्र सांठगांठ है।
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण का प्रभाव
- अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों को विधि निर्माण का अवसर प्रदान कर दिया जाता है.
- अपराधी-सह-राजनेताओं के विरुद्ध हजारों मामले सालों-साल तक लंबित रहने से न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को संदेह के दायरे में लाता है.
- एक उमीदवार की आपराधिक प्रतिष्ठा एक गुण के रूप में स्वीकार किये जाने से लोकतंत्र विकृत होने लगता है.
- आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति सांसद की कार्य प्रणाली में बाधा उत्पन्न करते हैं.
- राजनीतिक दलों द्वारा केवल उम्मीदवारों को जीतने की क्षमता पर अधिक ध्यान दिया जाता है इससे सम्पूर्ण चुनावी संस्कृति पर बुरा प्रभाव.
राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के क्या उपाय हैं?
- अपने नामांकन दाखिल करते समय, उम्मीदवारों को यह घोषित करना चाहिए कि अदालतों में उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
- राजनीतिक दल को भी अपनी वेबसाइट पर अपने उम्मीदवारों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का ब्योरा देना चाहिए हैं। पार्टियां बतायें कि उन्होंने बेदाग व्यक्तियों की जगह अपराध के मामले-मुकदमे में फंसे व्यक्ति को टिकट क्यों दिया.
- संसद को इस मामले पर कानून बनाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आपराधिक उम्मीदवार सार्वजनिक जीवन में प्रवेश न करें या विधायक न बनें।
- नामांकन फॉर्म भरते समय, उम्मीदवारों को अपने आपराधिक अतीत और उनके खिलाफ लंबित मामलों की घोषणा करनी चाहिए।
- राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से प्रचारित करना चाहिए और घोषणाएँ जारी करनी चाहिए।
- दागी उम्मीदवारों के खिलाफ आरोपों की ट्रायल फास्ट-ट्रैक अदालत में होना चाहिए।
- उच्च न्यायालयों को छह महीने के भीतर चुनाव याचिकाओं पर निर्णय दे देना चाहिए।
- उम्मीदवार की जीतना केवल चयन का कारण नहीं होना चाहिए।
- चुनाव आयोग को अपराधियों और राजनेताओं के बीच सांठगांठ को तोड़ने के लिए पर्याप्त उपाय करने चाहिए।
राजनीति के अपराधीकरण पर गठित विभिन्न समितियाँ
- संथानम समिति रिपोर्ट, 1963 – राजनीतिक भ्रष्टाचार हेतु सतर्कता आयोग की स्थापना की अनुशंसा
- वोहरा समिति रिपोर्ट, 1993 – अपराधियों, राजनेताओं तथा नौकरशाहों के मध्य गठजोड़ का अध्ययन
- पुलिस सुधारों पर पद्मनाभैया समिति – पुलिस के राजनीतिकरण तथा अपराधीकरण का अध्ययन