यह बैंकिंग सिस्टम में सुधार के उद्देश्य से आरबीआई द्वारा किया गया एक पहल है. इसके अंतर्गत आरबीआई भारत में कार्यरत सभी बैंक पर कड़ी निगरानी रखती है. आरबीआई इस उद्देश्य से बैंक की जमा राशि, परिसंपत्ति, राजस्व आय, लाभांश इत्यादि का मूल्यांकन करती है एवं इसे विभिन्न केटेगरी में रखती है.
आरबीआइ बैंकों को लाइसेंस देता है, नियम बनाता है और बैंक ठीक से काम करें इसकी निगरानी करता है। बैंक कारोबार करते हुए कई बार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं। इनको संकट से उबारने को आरबीआइ समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता है और फ्रेमवर्क बनाता है। ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन’ (पीसीए) इसी तरह का फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है। यह फ्रेमवर्क समय-समय पर हुए बदलावों के साथ दिसंबर, 2002 से चल रहा है। यह सभी व्यावसायिक बैंकों सहित छोटे बैंकों तथा भारत में शाखा खोलने वाले विदेशी बैंकों पर भी लागू है।
बैंकों को क्यों रखा जाता है पीसीए में
आरबीआइ को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिए धन से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को ‘पीसीए’ में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें। कोई बैंक कब इस स्थिति से गुजर रहा है, यह जानने को आरबीआइ ने कुछ इंडिकेटर्स तय किए हैं, जिनमें उतार-चढ़ाव से इसका पता चलता है। जैसे सीआरएआर, नेट एनपीए और रिटर्न ऑन एसेट्स।
सीआरएआर
बैंकों के लिए सीआरएआर यानी ‘कैपिटल टू रिस्क असेट रेश्यो’ फिलहाल नौ प्रतिशत निर्धारित है। सीआरएआर से पता चलता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पूंजी पर्याप्त है या नहीं। यह बैंक की तरफ से दिए गए जोखिम भरे कर्ज के अनुपात में निकाला जाता है। अगर किसी बैंक का सीआरएआर इससे कम होता है तो उस बैंक की वित्तीय सेहत खराब मानी जाती है। इस तरह सीआरएआर उन तीन टिगर प्वाइंट में से एक है, जिनमें उतार-चढ़ाव आने पर बैंक को पीसीए में डालने का फैसला किया जाता है।
नेट एनपीए
बैंक को पीसीए में डालने का दूसरा कारण नेट एनपीए का बढ़ना है। जब कोई ग्राहक बैंक से लिए गए कर्ज की तीन मासिक किस्त नहीं चुका पाता तो वह लोन एनपीए बन जाता है। इस तरह एनपीए का घटना या बढ़ना इस बात का संकेत है कि बैंक ने जो राशि उधार दी है, उसमें कितना जोखिम है। अगर किसी बैंक की नेट एनपीए उसके द्वारा उधार दी गई राशि के छह प्रतिशत से अधिक हो जाता है, तो आरबीआइ उस बैंक को पीसीए की श्रेणी में डाल देता है।
रिटर्न ऑन असेट
तीसरा महत्वपूर्ण टिगर ‘रिटर्न ऑन असेट’ है। इसका मतलब यह है कि किसी बैंक ने जो धनराशि उधार दी है या कहीं निवेश किया है, उस पर उसे कितना रिटर्न मिल रहा है। इसमें उतार चढ़ाव से पता चलता है कि बैंक मुनाफे में है या घाटे में। ‘रिटर्न ऑन असेट’ लगातार दो वषों तक नकारात्मक रहता तो बैंक को पीसीए में डाल दिया जाता है।
यदि किसी बैंक का स्वास्थ्य प्रतिकूल हो तो उस बैंक को कैटेगरी 1 में रखा जाता है. इस कैटेगरी में रखे बैंक पर आरबीआई कुछ शर्ते लागू करती है. यदि वह बैंक भारतीय है तो आरबीआई उसे लाभांश के वितरण करने से रोक देती है. यदि वह बैंक विदेशी बैंक है तो आरबीआई बैंक के संस्थापक को और ज्यादा पूंजी निवेश करने के निर्देश देती है.
यदि फिर भी बैंक के स्वास्थ्य में सुधार नहीं होता है तो बैंक को कैटगरी 2 में रख दिया जाता है. ऐसे बैंक पर पहले वाली शर्तें लागू होने के साथ ही कुछ अन्य शर्ते भी लागू होंगे. इन बैंको को नई शाखाएं स्थापित नहीं करने दी जाएगी एवं घाटे में चल रही शाखाओं को बंद करने का सुझाव दिया जाएगा. यदि इसके उपरांत भी उसके स्वास्थ्य में सुधार ना हो तब बैंक को कैटेगरी 3 में रखा जाएगा.
कैटिगरी 3 में रखे गये बैंक पर पहले की दोनों शर्तों के साथ ही कुछ अन्य शर्ते भी लागू होंगे. इन बैंक को अपने उच्च पदाधिकारियों के वेतन में कटौती का सुझाव दिया जाएगा. यह भी संभव है कि इन बैंकों को नया ऋण देने और नया जमा राशि प्राप्त करने से मना कर दिया जाएगा. यदि यह सारे उपाय असफल हो जाते हैं तब उस बैंक का विलय किसी अन्य बैंक में किया जाएगा.