HomeBPSC मुख्य परीक्षाGS पेपर 2 – भारतीय अर्थव्यवस्थाबिहार का आर्थिक पिछड़ापन के क्या कारण हैं?

बिहार का आर्थिक पिछड़ापन के क्या कारण हैं?

प्राचीन काल से ही बिहार ने लोकतंत्र, शिक्षा, राजनीति, धर्म एवं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में देश को ही नहीं बल्कि दुनिया को मार्गदर्शन देने का कार्य किया है. लोकतंत्र के क्षेत्र में प्रसिद्ध लिच्छवी गणतंत्र और शिक्षा जगत में नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेष आज भी शिक्षा एवं ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में अपने स्वरूप की कहानी कहते हैं.

भारत का पूर्वी राज्य बिहार इतिहास के पन्नों में भले ही एक गौरवशाली और संपन्न राज्य दिखाई देता हो परंतु उसका वर्तमान स्वरूप लोगों के मन में आशा और उल्लास नहीं जगाता. उपजाऊ भूमि के जल और खनिज के अपार भंडारों के बावजूद बिहार की गिनती देश के सबसे पिछड़े राज्यों में होती है.

बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के निम्न कारण हैं :-

निम्न प्रति व्यक्ति आय

बिहार राज्य की प्रति व्यक्ति आय अन्य राज्यों की तुलना में काफी निम्न है. स्थिर कीमत वर्ष 2011-12 के आधार पर वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय ₹26801 है जबकि अन्य राज्य जैसे झारखंड की प्रति व्यक्ति आय ₹54140, मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय ₹47820, उड़ीसा की प्रति व्यक्ति आय ₹55116 है जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय ₹77435 है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि निम्न प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में काफी नीचे है और भारत की तुलना में उसकी प्रति व्यक्ति आय लगभग एक तिहाई है.

व्यावसायिक ढांचे का प्राथमिक उत्पादनशील होना

कृषि क्षेत्र के कार्यों में प्राथमिकता बिहार की कार्यकारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि में लगा रहता है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान का अंश बहुत बड़ा होता है. बिहार की कार्यकारी जनसंख्या का 76% कृषि कार्यों में लगा हुआ है. कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का अत्यधिक होना उसके पिछड़ेपन का परिचायक है

कृषि क्षेत्र का बदहाल होना

बिहार कृषि प्रधान राज्य है. यह बिहार की अर्थव्यवस्था को गतिशीलता एवं रोजगार प्रदान करता है परंतु बिहार की कृषि पिछड़ी हुई है. भूमि सुधार के ना होने तथा हरित क्रांति के प्रभाव से अछूता रहने के कारण बिहार में उत्पादन का स्तर कृषि क्षेत्र में निम्न स्तर का है. बिहार में अधिकांश किसान छोटे या सीमांत कृषक की श्रेणी में आते हैं. बिहार में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 2799 किलोग्राम है वहीं पंजाब में 3484 किलोग्राम है. राज्य में कुल जोत की मात्र 49% भूमि सिंचित है, जिसके कारण बिहार की कृषि पिछड़ी अवस्था में है, क्योंकि सिंचाई ही कृषि का महत्वपूर्ण साधन है.

बाढ़ की समस्या

बिहार की कुल भूमि का 73.06% अर्थात दो तिहाई भाग बाढ़ से ग्रसित है. बिहार में बाढ़ नेपाल से निकलने वाली नदियों के कारण आती है. प्रत्येक वर्ष कम या अधिक मात्रा में बाढ़ आने के कारण विभिन्न प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं. फसल, मकान, मवेशी, सड़कों का क्षतिग्रस्त होना सामान्य स्थिति है. बिहार के कुल 28 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं और ढाई लाख हेक्टेयर भूमि जल जमाव की समस्या से प्रभावित हैं. देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 17% हिस्सा बिहार में है. भारत में हुई बाढ़ से क्षति का लगभग 12% बिहार में होता है. 

ऊर्जा का अभाव

ऊर्जा आर्थिक विकास का आधार है कृषि हो या उद्योग किसी भी क्षेत्र का विकास ऊर्जा के बिना संभव नहीं है. बिहार में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता न्यून है. मार्च 2015 तक बिहार में विद्युत उत्पादन की कुल मात्रा 3704 मेगावाट थी जो अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है.

औद्योगिक पिछड़ापन

स्वतंत्रता के समय बिहार औद्योगिक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में काफी आगे था, लेकिन बिहार के विभाजन के बाद सभी प्रमुख उद्योग झारखंड में चले गए और बिहार औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा राज्य बन गया. बिहार में उपलब्ध उद्योग या तो बंद हो गए या बंद होने की स्थिति में है. राज्य में कुल चीनी मिलों की संख्या 28 है. जिसमें 11 चीनी मिलें ही चालू स्थिति में है. बिहार राज्य के 7 जिलों में एक भी उद्योग स्थापित नहीं है

निम्न स्तर की आधारभूत संरचना

परिवहन प्रणाली वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार का विस्तार करती है. परिवहन विकास से दूरदराज के इलाके और संसाधन उत्पादन के लिए खुल जाते हैं. किसी क्षेत्र में कृषि, वन, खनिज संसाधन अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं परंतु उसके विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक वे सुदूर और पहुंच के बाहर रहेंगे. बिहार में परिवहन सुविधाओं की स्थिति निम्न स्तर की है. सड़क, रेल एवं वायु यातायात की सुविधा पिछड़ी अवस्था में है. बिहार में राष्ट्रीय उच्च पथ की लंबाई 4595 किलोमीटर है जबकि राज्य पथ की लंबाई 4523 किलोमीटर है, जो अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. बिहार राज्य में रेलवे मार्ग की कुल लंबाई 3598 किलोमीटर है जो अन्य राज्यों की तुलना में निम्न है. 

वित्तीय संस्थाओं का कम होना

बिहार में वित्तीय संस्थाओं का विकास अन्य राज्यों की तुलना में नहीं हो पाया है. बिहार के विभाजन के बाद साख प्रवाह में और गिरावट हो गई. बिहार में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कुल 2092 शाखाएं हैं तथा बिहार में राज्य एवं जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की कुल शाखाएं 324 हैं. बिहार में ऋण जमा अनुपात 41.7% है, जो अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. बिहार में वाणिज्यिक बैंकों की कुल शाखा 6661 है जो देश की कुल शाखाओं का 5.2% है जबकि उत्तर प्रदेश में 12.1% है. वित्तीय संस्थाओं का निम्न स्तर होने के कारण उद्योग एवं कृषि कार्यों के लिए ऋण की उपलब्धता नहीं हो पाती है और यह बिहार के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है

निम्न आर्थिक विकास दर

बिहार में कृषि एवं उद्योग की बदहाली का असर उसके आर्थिक विकास पर पड़ा है. बिहार के विभाजन के बाद उद्योग झारखंड में चले गए, जिसके परिणाम स्वरूप बिहार लगभग उद्योगविहीन हो गया. ऐसी स्थिति में बिहार को अपने आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए आवश्यक था कि वह कृषि क्षेत्र पर फोकस करें परंतु सरकार की विभिन्न नीतियों एवं कार्यों का प्रभाव कृषि पर नकारात्मक पड़ा. वर्तमान दशक में सरकार के द्वारा कृषि पर ध्यान देने एवं अन्य नीतियों के कारण आर्थिक विकास में तेजी से वृद्धि हुई है. सकल राज्य घरेलू उत्पाद में मध्यकालीक वृद्धि दर 7.6% हुई जबकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में यह वृद्धि दर 6.8% हुई

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