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Bihar Tourism: बिहार के कई स्तूपों से अलग है यह स्तूप

नए साल के स्वागत के लिए अगर आप दिसंबर और जनवरी सैर-सपाटे का मन बना रहे हैं, तो बेगूसराय जिले में मौजूद कावर झील से सटा हरसाईं बौद्ध स्तूप आपके लिए एक लाजवाब विकल्प हो सकता है. यहां आपको ऐतिहासिक स्तूप को देखने और जानने का मौका तो मिलेगा ही, धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन का आनंद भी आप पाएंगे. यहां पहुंचना भी काफी आसान है क्योंकि यह बेगूसराय जिला मुख्यालय से 60 किमी और गढ़पुरा प्रखंड मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर ही है. साल भर यहां सैलानी आते रहते हैं.

अगर आप यहां जाते हैं तो पाल कालीन बौद्ध स्तूप के साथ-साथ कावर झील के दर्शन और शक्ति पीठ मां जयमंगलागढ़ की भी पूजा-अर्चना कर सकते हैं. पाल कालीन हरसाईं बौद्ध स्तूप पर किताब लिख चुके इतिहासकार महेश भारती ने न्यूज़ 18 लोकल को बताया कि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इनकी अस्थियों को 8 भागों में बांटा गया था. एक हिस्से को बौद्ध भिक्षुओं ने शक्ति पीठ मां जयमंगलागढ़ के उत्तर-पूर्व की ओर कावर झील पक्षी विहार के कछार पर स्तूप बनाकर स्थापित किया. वर्तमान में एक ही स्तूप बचा है. बाकी तीन स्तूप देखरेख के अभाव में समाप्ति के कगार पर हैं.

स्तूप से जुड़ी हैं अनोखी मान्यताएं

इस स्तूप को लेकर मान्यता यह भी है कि शक्तिपीठ मां जयमंगलागढ़ की सुरक्षा राजा महाराजा इसी स्तूप से करते थे. हालांकि इस स्तूप से शक्तिपीठ जयमंगलागढ़ की दूरी कावर झील से होते लगभग 5 किलोमीटर है. स्थानीय लोग इस स्तूप को रावण का छीटा के नाम से भी पुकारते हैं. इन तमाम बातों के बावजूद सच यह है कि रखरखाव के अभाव में पालकालीन हरसाईं स्तूप का अस्तित्व धीरे-धीरे अब मिटता जा रहा है. सबसे बड़ा खतरा यह है कि स्थानीय लोग लगातार स्तूप की मिट्टी का खनन कर रहे हैं. हालांकि अप्रैल 2022 में सीओ स्मिता कुमारी ने इस धरोहर को सुव्यवस्थित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने के लिए सरकार को लिखा था ताकि इस धरोहर को बचाया जा सके.

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