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बिहार बनाने में सच्चिदानंद सिन्हा का क्या रोल रहा, बिहार दिवस की पूरी कहानी

22मार्च को हर बिहारवासी ‘बिहार दिवस 2022’ सेलिब्रेट कर रहे हैं। ऐसे मौके पर कई युवाओं के जेहन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर बिहार को प्रांत के रूप में पहचान कब और कैसे मिली।

संपूर्ण भारतवर्ष की राजधानी रहा है बिहार
चंद्रगुप्त के काल में भारतवर्ष का विस्तार आज के अफगानिस्तान तक था। उस दौर में भारत की राजधानी पाटलिपुत्र थी, जिसका क्षेत्र आज के पटना और आसपास के इलाकों में है। अंग्रेजों के जमाने में बिहार को बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया गया था। एक लंबी लड़ाई के बाद बिहार को अलग प्रांत की मान्यता मिली।

लंदन से शुरू हुई बिहारी अस्मिता की लड़ाई
आधुनिक बिहारी अस्मिता की लड़ाई करीब सवा सौ साल पहले लंदन से शुरू हुई थी। आरा के रहने वाले सच्चिदानंद सिन्हा वकालत की डिग्री लेने के लिए लंदन गए थे, वहां कुछ दोस्तों के ताना मारने पर उन्होंने बिहार को अलग पहचान दिलाने का संकल्प ले लिया था। लंदन से वकालत की डिग्री लेने के बाद सच्चिदानंद सिन्हा ने भारत की अदालतों में ही प्रैक्टिस शुरू की। इसके साथ ही उन्होंने 1894 में पटना से एक ‘बिहार टाइम्स’ अखबार की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य बिहार को अलग राज्य बनवाने की मांग को प्रमुखता से उठाना था। पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वीईवी गिरी बताते हैं कि सच्चिदानंद सिन्हा पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी बनाए गए थे। वह बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल के चेयरमैन भी रहे। वह बिहार के पहले फाइनेंस मिनिस्टर भी रहे। बाद में सच्चिदानंद सिन्हा संविधानसभा के पहले और अंतरिम अध्यक्ष बनाए गए। सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 में आज के बक्सर के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत चौंगाई प्रखंड के मुरार गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।

खुद को बिहारी बताने पर सच्चिदानंद सिन्हा की लंदन में हुई थी बेइज्जती
बात फरवरी 1893 की बात है। सच्चिदानंद सिन्हा लंदन की एक गोष्ठी में गए थे। वहां लोगों ने उनसे पूछा कि आप भारत के किस प्रांत से हैं, तो उनका जवाब था बिहार। इसपर वहां मौजूद लोग ठहाका लगाने लगे और चुनौती दी कि भारत के नक्शे में बिहार कहां है ये बताइए। यह बात सच्चिदानंद सिन्हा को कचोट गई और उन्होंने बिहार को अलग प्रांत के रूप में पहचान दिलाने की बात मन में ठान ली। वह जब भारत लौटे तो बक्सर रेलवे स्टेशन पर उन्होंने एक बिहारी युवक को बंगाल पुलिस की ड्रेस में देखा। तो उन्हें लगा कि बिहार की अपनी तो कोई पहचान ही नहीं है। भारत लौटते ही सच्चिदानंद सिन्हा बिहार को अलग राज्य की मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन की शुरुआत कर दी।

चार बिहारियों ने मिलकर अलग राज्य की डिमांड तेज की
बंगाल प्रेसीडेंसी से बिहार को अलग कराने के लिए सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, नंदकिशोर लाल और राय बहादुर कृष्ण सहाय मिलकर आंदोलन को तेज करने में जुट गए। ये चारों मिलकर दिल्ली में लगातार बिहार को अलग करने की डिमांड करने लगे। उस दौर में विरोधी इन्हें चार भिखारी कहते थे।

मजबूर होकर अंग्रेजों ने बिहार को दी अलग राज्य की मान्यता
1899 तक बंगाल राष्ट्रवादियों और विरोधियों का गढ़ बन चुका था। इस वजह से बिहार को अलग राज्य बनाने की मांग को बल मिलने लगा था, क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत भी चाह रही थी कि बंगाल प्रांत का विभाजन किया जाए। 1904 में ब्रिटिश हुकूमत ने बंगाल के विभाजन का विचार पेश किया। विभाजन से पहले लॉर्ड कर्जन ने कई इलाकों का दौरा किया और प्रमुख हस्तियों से चर्चा भी की। 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन कर दो हिस्सों में बांट दिया गया। 1908 में अली ईमान की अध्यक्षता में बिहार का पहला प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया गया कि बिहार को अलग राज्य बनाया जाए। इसी साल बिहार के जमींदारों ने भी अलग राज्य बनाने की मांग तेज कर दी थी। 1907 में कोलकाता हाई कोर्ट के पहले बिहारी जज सर्फुद्दीन बने। उसके बाद अली इमाम भारत सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल बने। 1909 में भारत परिषद अधिनियम (मार्ले मिंटो सुधार) अधिनियम लाया गया। इस अधिनियम के तहत पहली बार 1910 में चुनाव हुए। चुनाव में सच्चिदानंद सिन्हा चार-चार राजाओं को हराकर केंद्रीय विधान परिषद पहुंचे। बिहार के मौलाना मजरूल हक मुसलमान प्रतिनिधि के तौर पर केंद्रीय विधान परिषद पहुंचे।

पटना को बसाने में लॉर्ड हार्डिंग का अहम रोल
बिहार की राजधानी पटना को बनाने में अंग्रेज अधिकारी लॉर्ड हार्डिंग का रोल अहम रहा। लॉर्ड हार्डिंग ने ही पटना में यूनिर्वसिटी, कॉलेज, नई सड़कों का निर्माण करवाया। लॉर्ड हार्डिंग की डिमांड पर ही 1911 में जार्ज पंचम ने बंगाल से अलग बिहार-उड़ीसा नाम से एक अलग प्रांत के निर्माण की घोषण की थी। इसके बाद लॉर्ड हार्डिंग की सलाह पर ही पटना को बिहार की राजधानी बनाने का फैसला लिया गया।

न्यूजीलैंड से आर्किटेक्ट ने नए पटना का डिजाइन बनाया
पटना को बिहार की राजधानी बनाने का फैसला होने के बाद इस शहर को नए सिरे से तैयार करने की चुनौती थी। इसके लिए लॉर्ड हार्डिंग ने न्यूजीलैंड से आर्किटेक्ट जेएफ मुनिंग्स को बुलाया और दिल्ली की तर्ज पर इस शहर में भवन और रोड निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। मौजूदा वक्त में पटना की सड़कों पर चलते वक्त हमारी नजरें जितनी भी पुरानी इमारतों पर जाती हैं वह सभी लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल में बनी। पटना हाईकोर्ट, विधानसभा भवन, पीएमसीएच, पटना यूनिर्वसिटी, पटना संग्रहालय, बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल समेत तमाम भवन उसी दौर की हैं। पटना कॉलेज का प्रशासनिक भवन इन सबसे ज्यादा पुराना है। इसका निर्माण हॉलैंड के कारीगरों ने 1863 ई. में किया था। लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल 1910 से 16 तक रहा।


लॉर्ड हार्डिंग ने की थी पटना हाई कोर्ट भवन का उद्धाटन

वायसराय लार्ड हार्डिंग ने खुद 3 फरवरी, 1916 को शानदार समारोह में पैलेडियन डिजाइन से निर्मित नियोक्लासिकल शैली में बनी पटना हाई कोर्ट के विशाल इमारत का उद्घाटन किया था। चाल सेटिंग ने 1 दिसंबर, 1913 को इमारत की नींव रखी थी और 3 साल में हाई कोर्ट बनकर तैयार हो गया था। 1936 में उड़ीसा से अलग होने के बावजूद 1948 तक पटना हाई कोर्ट भवन सही न्यायिक कार्य चलता था। खास बात यह है कि बिहार को अलग प्रांत बनाने के लिए कभी भी कोई खून खराबा वाले आंदोलन नहीं हुए। इस राज्य का निर्माण पूरी तरह से कूटनीतिक तरीके से हुई।

इतिहास के गलियारे के माध्यम से बिहार दिवस: संदर्भ और विस्तार
ये विदित है कि, बिहार दिवस हर साल 22 मार्च को ब्रिटिश शासन द्वारा राज्य को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग करने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 21 मार्च, 1912 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी गवर्नर थॉमस गिब्सन कारमाइकल द्वारा बंगाल को चार प्रांतों- बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम में विभाजित करने की घोषणा की गई थी। बाद में 1936 में, ओडिशा को बिहार से अलग कर दिया गया था, और पुनः वर्ष 2000 में झारखंड राज्य बनाया गया था। 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सुशासन बाबू नीतीश कुमार के पदभार संभालने के बाद फिर से यह दिन बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा, और इसे सबसे पहले वर्ष 2010 में बड़े पैमाने पर मनाया गया था। बिहार दिवस का उत्सव, केवल बिहार राज्य और भारत में ही सीमित नहीं है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोप, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमरीका, और त्रिनिदाद जैसे अन्य देशों में रहने वाले बिहारी प्रवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।

बिहार  दिवस 2022 के संदर्भ में: प्रासंगिकता और संभावना
इस वर्ष बिहार दिवस का थीम (विषय) बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, “जल जीवन हरियाली और नल-जल योजना” पर केंद्रित है। यह थीम बिहार सरकार द्वारा लोगों में वार्षिक वर्षा की घटती दर, कई जिलों में घटते जल स्तर, जल सुरक्षा के लिए खतरा और राज्य भर में हरियाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए रखा गया है।


बिहार को समझने के लिए, हमें विभिन्न आयामों के माध्यम से बिहार को समझना होगा। कुछ बुद्धिजीवियों ने बिहार को ‘रुकतापुर’ की संज्ञा दे दी, यानि ऐसी जगह जहां विकास के पहिये जाम हो गए। हालाँकि, यह लगभग हर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास सूचकांकों में बिहार राज्य के साल दर साल खराब या सबसे खराब प्रदर्शन के अनुरूप भी है- फिर चाहे वह सतत विकास लक्ष्य सूचकांक हो, भोजन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं से संबंधित सूचकांक हों , प्रशासन के सभी स्तरों में मौजूद बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, प्रशासन और शासन और सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में जवाबदेही, नैतिकता, सत्यनिष्ठा और जवाबदेही का अभाव, व्यापार करने में आसानी में चुनौतियां, आम बिहारियों की सुरक्षा, और आबादी के हाशिए पर रहने वाले वर्ग- जैसे कि  महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, एलजीबीटी की भलाई। इन सभी ने अंततः राज्य को बीमारू श्रेणी या तथाकथित रुक्तापुर में में धकेल दिया।

बॉलीवुड के सिल्वर स्क्रीन, मीडिया और गैर-सूचित कथाओं ने भी पिछले कुछ वर्षों में बिहार के बारे में कई नकारात्मक धारणाएं पैदा की हैं। भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पवित्र और ज्ञानी भूमि के रूप में बिहार , भारतीय सभ्यता की पालना, माता सीता की जन्मभूमि, भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू की जन्मभूमि- ये सभी अच्छे और सकारात्मक पहलू छिपे हुए हैं। और इसकी जगह- भारत का सबसे पिछड़ा राज्य, बेरोजगार युवाओं की फौज वाला प्रांत, भूखे और कुपोषित बच्चों वाला राज्य जैसे आख्यानों ने ले लिया। अधिकांश भारतीयों की नज़र में आधुनिक बिहार का एकमात्र सकारात्मक पहलू यह है कि बिहार सबसे अधिक संख्या में सिविल सेवा अधिकारियों, वैज्ञानिकों और अभियंता का घर भी है।

अपने 110वें जन्मदिन के मौके पर, बिहार को कई सवालों के जवाब देने और शासन और प्रशासनिक घाटे और विकासात्मक असमानताओं से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए कई विकासात्मक आयामों में आगे बढ़ना है। फिर चाहे, वो “आर्थिक हल, युवाओं को बल या युवा शक्ति-बिहार की प्रगति”, नीति की आकांक्षा हो, जो सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी के मिश्रित दृष्टिकोण से ही संभव है।

इस दिशा में, बिहार उद्योग संघ के साथ उद्योग विभाग, बिहार सरकार द्वारा हाल ही में संपन्न बिहार स्टार्ट अप कॉन्क्लेव (12 मार्च 2022) का आयोजन एक स्वागत योग्य कदम है और इसमें “बिहार को स्टार्ट-अप कैपिटल” में बदलने की क्षमता है, यदि इस प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक हितधारक अपनी क्षमताओं का सर्वोत्तम प्रयास करते हैं, और इसके बाद प्रत्येक स्तर पर लगातार और उचित अनुवर्ती कार्रवाई करते हैं। जब भारत ने 2016 में अपनी स्टार्ट-अप नीति लागू की, तो बिहार देश का पहला राज्य था, जिसने 10 लाख रुपये के सिड कोष (फंड) के साथ शुरुआत की।

इसके अलावा, एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण पर ध्यान देना, प्रवासी भारतीयों (बिहारी) को निवेश बोर्ड में रखते हुए, नौकरशाही लालफीताशाही को दरकिनार करने के लिए एक जवाबदेह और पारदर्शी फास्ट ट्रैक अनुमोदन तंत्र भी “ब्रेन-ड्रेन (प्रतिभा पलायन)” को रोकेगा और “रिवर्स ब्रेन-ड्रेन” की संस्कृति को चालू करेगा। ।

राज्य में अनछुए और कम ज्ञात पर्यटन स्थलों को ध्यान में रखते हुए पर्यटन क्षेत्र में निवेश पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कदम, वैश्विक महामारी कोविड -19 के पहली और दूसरी लहरों से सबक लेते हुए स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे (प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल) में निवेश, शिक्षा प्रणाली का एक पूर्ण ओवरहाल, प्रवास और प्रवासी श्रमिकों के लिए स्थायी एंटी-डॉट तैयार करना ताकी उन्हे देश के दूसरे राज्यों से बार बार धक्का और गाली खाकर घर आना न पडे, अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए शराबबंदी जैसी मजबूत नीति, और महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजनाओं (2.0) के वास्तविक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना, आदि से हीं आत्मनिर्भर बिहार बनाया जा सकता है।

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